भारत सरकार हर साल अरबों खर्च कर गरीबों के थाल में भोजन पहुंचाने की कोशिश करती है, लेकिन राइस मिलों और वितरण तंत्र की लापरवाही ने ‘निशुल्क अनाज’ को ‘न खाने योग्य’ बना दिया है। बसना (जिला महासमुंद), 21 अक्टूबर 2025 //
गरीबों को निशुल्क या सस्ते दर पर चावल उपलब्ध कराने के लिए भारत सरकार द्वारा शुरू की गई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) देश के 80 करोड़ से अधिक नागरिकों के लिए जीवनरेखा साबित हुई है। सरकार हर महीने अरबों रुपए खर्च कर यह सुनिश्चित करती है कि किसी गरीब के घर में भूख से कोई बर्तन खाली न रहे। लेकिन जमीनी स्तर पर इस योजना में भ्रष्टाचार, लापरवाही और अनियमितताओं की पोल खुलती जा रही है।
ऐसा ही एक मामला महासमुंद जिले के बसना विधानसभा क्षेत्र के ग्राम रेमडा में सामने आया है, जहां ग्रामीणों को वितरित किया गया सरायपाली के लक्ष्मी राइस राइस मिल से भेजा गया पीडीएस चावल न तो साफ-सुथरा है और न ही खाने लायक। ग्रामीणों ने बताया कि सरकारी चावल में कंकड़, फफूंद और टूटा-फूटा चावल भरा हुआ है, जिससे परिवार के लोग बीमार पड़ने का डर बना रहता है। ग्रामीणों ने जताई नाराजगी
ग्रामीण उग्रसेन साखरे ने कहा कि “सरकार गरीबों के लिए निशुल्क चावल दे रही है, इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें घटिया गुणवत्ता का अनाज भेजा जाए। कई बार शिकायत करने के बावजूद न तो सेल्समेन कोई कार्रवाई करता है और न ही खाद्य विभाग के अधिकारी इस पर ध्यान देते हैं।”
ग्रामीणों का कहना है कि जिस चावल को सरकार प्रत्येक किलो पर 35 से 40 रुपए तक की लागत से उपलब्ध कराती है, वही चावल 1 से 3 रुपए प्रति किलो या निशुल्क मिलने के कारण जनता को ‘कम कीमत का, कम गुणवत्ता वाला अनाज’ मान लिया जाता है। लेकिन हकीकत यह है कि सरकार के खर्च और उद्देश्य के बावजूद राइस मिलों से निकलने वाला चावल वितरण केंद्रों तक आते-आते घटिया हो जाता है।
राइस मिलों की भूमिका पर उठे सवाल : सूत्रों के मुताबिक, जो चावल भारत सरकार द्वारा वितरण के लिए राइस मिलों को प्रोसेसिंग हेतु भेजा जाता है, वही चावल कई बार कोचियों और थोक व्यापारियों को बेच दिया जाता है। इसके बाद उसी अनाज की जगह बाजार में उपलब्ध घटिया या बचा हुआ चावल हितग्राहियों के बीच बांट दिया जाता है। बताया जा रहा है कि बसना क्षेत्र में लक्ष्मी राइस मिल (बगई जोर, सरायपाली) से भेजा गया चावल ही इस गांव में वितरित किया गया था।
जानकारों का कहना है कि जिस चावल पर सरकार 40 से 55 रुपए प्रति किलो खर्च करती है, वही चावल कुछ लोग 22 से 26 रुपए प्रति किलो में बेचकर निजी लाभ कमा लेते हैं। इस गोरखधंधे में मिल संचालक, कोचिया और कुछ पीडीएस दुकान संचालक शामिल होने की आशंका जताई जा रही है।
निरीक्षण व्यवस्था पर सवालिया निशान
ग्रामीणों का कहना है कि खाद्य विभाग के अधिकारियों द्वारा नियमित निरीक्षण नहीं किया जाता। यदि अधिकारी समय-समय पर गोदाम और राइस मिलों का निरीक्षण करें तो इस तरह की गड़बड़ियों पर रोक लगाई जा सकती है। लेकिन निरीक्षण में ढिलाई के कारण ही गरीबों तक घटिया और बदबूदार चावल पहुंच रहा है।
एक ग्रामीण ने कहा — “अगर यह चावल खाने लायक नहीं है, तो सरकार को हमें चावल की जगह नकद राशि देनी चाहिए ताकि हम बाजार से उचित गुणवत्ता का चावल खरीद सकें। इससे जो भ्रष्टाचार और धंधा चल रहा है, वह खुद ही बंद हो जाएगा।”
सरकार के उद्देश्य पर पानी फेरती लापरवाही
भारत सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत महामारी के बाद से अब तक करोड़ों टन अनाज वितरित किया है। इस योजना के तहत प्रत्येक लाभार्थी को हर महीने 5 किलो चावल निशुल्क दिया जाता है। लेकिन जब उस चावल की गुणवत्ता ही निम्नस्तरीय हो, तो गरीब परिवारों की परेशानी और बढ़ जाती है।
बसना और सरायपाली क्षेत्र के कई अन्य गांवों से भी ऐसी ही शिकायतें सामने आई हैं, जिससे संकेत मिलता है कि यह कोई एक isolated घटना नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित लापरवाही और भ्रष्टाचार की कड़ी है।
मामले में बसना खाद्य निरीक्षक हेमंत वर्मा ने फोन नही उठाया वहीं महासमुंद जिला खाद्य अधिकारी अजय यादव फोन काट दिए
निष्कर्ष
गरीबों के नाम पर शुरू की गई योजनाओं का लाभ तभी वास्तविक रूप से जनता तक पहुंचेगा जब वितरण प्रणाली में पारदर्शिता लाई जाए। राइस मिलों और पीडीएस दुकानों की सघन जांच हो, दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए और ग्रामीणों को गुणवत्ता की गारंटी मिले।
सरकार की मंशा गरीबों का पेट भरने की है — लेकिन यदि अनाज ही “खाने लायक न हो”, तो यह मंशा केवल कागजों तक सिमट कर रह जाएगी।