Monday, June 23, 2025
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महासमुंद/ इरादे मजबूत हों, तो उम्र, संसाधन और सीमाएं कभी भी सपनों की उड़ान नहीं रोक सकतीं इन महिला समूहों के उत्पादों की मांग अब सिर्फ गांवों तक सीमित नहीं है. दिल्ली, पुणे जैसे महानगरों से भी ऑर्डर आ रहे हैं

महासमुंद/ इरादे मजबूत हों, तो उम्र, संसाधन और सीमाएं कभी भी सपनों की उड़ान नहीं रोक सकतीं इन महिला समूहों के उत्पादों की मांग अब सिर्फ गांवों तक सीमित नहीं है. दिल्ली, पुणे जैसे महानगरों से भी ऑर्डर आ रहे हैं

 

छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले की एक साधारण महिला ने गांव की सीमाओं को पार कर आत्मनिर्भरता की ऐसी मिसाल पेश की है, जो अब राज्य की हजारों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी है. हम बात कर रहे हैं 73 वर्षीय निरंजना चंद्राकर की, जो ‘जागृति महिला स्व सहायता समूह’ की अध्यक्ष हैं. उन्होंने वर्ष 2000 में गांव की 10 महिलाओं के साथ मिलकर इस समूह की शुरुआत की थी. तब किसी को अंदाजा नहीं था कि यह छोटा प्रयास एक दिन छत्तीसगढ़ी स्वाद को राष्ट्रीय पहचान दिलाएगा.

महिला बाल विकास विभाग की पर्यवेक्षक की मदद से बैंक में खाता खोलकर समूह की औपचारिक शुरुआत हुई. शुरुआत में छत्तीसगढ़ महिला कोष से सिर्फ पांच हजार रुपये का ऋण मिला, जिसे चुकाने के बाद समूह को दस हजार रुपये और मिले, धीरे-धीरे महिलाओं ने घर की चारदीवारी से निकलकर सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर अपने कदम मजबूत किए.

पहले ये महिलाएं कृषि, विवाह या पारिवारिक जरूरतों के लिए स्थानीय साहूकारों से ऊंचे ब्याज दर पर कर्ज लेने को मजबूर थीं. लेकिन समूह बनने के बाद महिलाओं ने हर महीने पैसे जमा करने की व्यवस्था शुरू की और जरूरतमंदों को बिना ब्याज के ऋण उपलब्ध कराया. यह पहल महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित हुई.

समूह को ‘रेडी टू ईट’ योजना के तहत सरायपाली, बसना, बागबाहरा, पिथौरा और महासमुंद जैसे पांच ब्लॉकों में काम मिला. इस प्रोजेक्ट ने महिलाओं को न सिर्फ आय का साधन दिया बल्कि आत्मविश्वास भी बढ़ाया. इसके बाद समूह को छत्तीसगढ़ महिला कोष से चार लाख रुपये का लोन मिला, जिससे उन्होंने पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजनों को व्यवसाय के रूप में विकसित किया. आज यह समूह ठेठरी, खुरमी, पूरन लड्डू, लाई बड़ी, रखिया बड़ी, अरसा, देसी पापड़, अचार और मुरकु जैसे उत्पाद तैयार कर बड़े आयोजनों में स्टॉल लगाता है.

सिरपुर मेला, राज्योत्सव और महिला मड़ई जैसे आयोजनों में इनकी उपस्थिति खास होती है. इन उत्पादों की कीमतें भी गुणवत्ता के अनुसार तय हैं. जैसे पूरन लड्डू की 35 नग की पैकिंग लगभग 1100 रुपये में मिलती है. रखिया बड़ी की कीमत करीब 600 रुपए प्रति किलो, लाई बड़ी 500 रुपए प्रति किलो, अरसा 700 रुपए प्रति किलो, जबकि ठेठरी 600 और छोटी बड़ी लगभग 400 रुपए प्रति किलो में बिक रही हैं.।

इनकी खास बात यह है कि इन उत्पादों की मांग अब सिर्फ गांवों तक सीमित नहीं है. दिल्ली, पुणे जैसे महानगरों से भी ऑर्डर आ रहे हैं. वहीं, शादियों और विशेष आयोजनों में भी इन व्यंजनों की जबरदस्त डिमांड बनी रहती है. इस समय समूह में 10 महिलाएं सक्रिय हैं, जो अपनी मेहनत और लगन से न केवल अपने घर की आर्थिक स्थिति सुधार रही हैं, बल्कि स्थानीय संस्कृति और स्वाद को भी जिंदा रखे हुए हैं.

समूह की अध्यक्ष निरंजना चंद्राकर बताती हैं कि आज महिलाएं आत्मनिर्भर हैं और गांव की अन्य महिलाओं को भी जागरूक कर रही हैं. ‘जागृति महिला स्व सहायता समूह’ की यह यात्रा बताती है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो उम्र, संसाधन और सीमाएं कभी भी सपनों की उड़ान नहीं रोक सकतीं ।

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