छत्तीसगढ़ विशेष: कैसे हुआ प्रदेश का नामकरण ,पढ़े 25 हजार करोड़ से 5 लाख करोड़ के GDP तक का सफर
छत्तीसगढ़ केवल प्राकृतिक संपदा से भरपूर प्रदेश नहीं है, बल्कि इतिहास और संस्कृति की गहराइयों से जुड़ा हुआ क्षेत्र है। यहां की धरती के गर्भ में लौह, कोयला और बॉक्साइट जैसे खनिजों का खजाना छिपा है, तो वहीं इतिहास के गर्भ में वीरता, शासन और परंपरा की अद्भुत कहानियां संजोई हुई हैं।
छत्तीसगढ़ का इतिहास प्राचीन दक्षिण कोसल राज्य से शुरू होकर मौर्य, गुप्त, कलचुरी, मराठा और ब्रिटिश काल तक विस्तृत है। स्वतंत्रता संग्राम में यहां के आदिवासी आंदोलनों ने नई चेतना जगाई। आज यह राज्य अपनी सांस्कृतिक जड़ों को संजोते हुए आधुनिकता की ओर अग्रसर है।
प्राकृतिक संसाधनों, सांस्कृतिक विरासत और औद्योगिक प्रगति का अद्भुत संगम छत्तीसगढ़ को भारत के सबसे संभावनाशील राज्यों में शामिल करता है। दो दशक में इस राज्य ने यह सिद्ध कर दिया है कि परंपरा और विकास साथ-साथ चल सकते हैं और यही इसकी असली पहचान है।
नाम के पीछे की कथा : माना जाता है कि इस क्षेत्र में स्थित 36 किलों या ‘गढ़’ होने की वजह से इसका नाम छत्तीसगढ़ पड़ा। रायपुर जिले के गजेटियर (1973) में उल्लेख है कि इनमें से 18 गढ़ शिवनाथ नदी के उत्तर और 18 दक्षिण दिशा में स्थित थे। एक अन्य मत के अनुसार, छत्तीसगढ़ शब्द चेदिशगढ़ का अपभ्रंश है, क्योंकि यह भूमि लंबे समय तक चेदि राजवंश के अधीन रही थी।
प्राचीन दक्षिण कोसल से आधुनिक यात्रा तक : इतिहासकारों के अनुसार, वर्तमान छत्तीसगढ़ का विस्तार प्राचीन दक्षिण कोसल, महाकांतार (बस्तर का वन क्षेत्र) और दण्डकारण्य जैसे प्रसिद्ध ऐतिहासिक प्रदेशों से जुड़ा रहा है।
इस धरती ने कई महान वंशों का शासन देखा है, जिनमें देशज राजर्षितुल्य, शरभपुरीय, पाण्डुवंश, नलवंश, छिंदक नागवंश, फणीनागवंश, सोमवंश और कलचुरी वंश प्रमुख हैं। इन राजाओं ने यहां मंदिरों, किलों और स्थापत्य कला की अनमोल धरोहर छोड़ी, जो आज भी राज्य की ऐतिहासिक पहचान का हिस्सा हैं।
मराठा, अंग्रेज और स्वतंत्रता संग्राम की गाथा : मध्यकाल में यह क्षेत्र मराठा शासन के अधीन आया, जहां स्थानीय रियासतों और जमींदारों ने प्रशासनिक ढांचा तैयार किया। बाद में अंग्रेजों ने इस क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित किया। आजादी की लड़ाई में भी छत्तीसगढ़ ने अपनी वीरता से पूरे देश को प्रेरित किया। 1857 की क्रांति में यहां के वीरों, जैसे सोनाखान के शहीद वीर नरहरदेव ने अंग्रेजों के खिलाफ डटकर संघर्ष किया।
अतीत की गूंज से प्रेरित वर्तमान : छत्तीसगढ़ की पहचान आज केवल अपने खनिजों और उद्योगों से नहीं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक गौरव से भी है। यहां की मिट्टी में इतिहास की गूंज, परंपरा की सुगंध और प्रगति की धड़कन एक साथ महसूस होती है। यही विशेषता इस राज्य को भारत के सबसे विशिष्ट और गर्वशील प्रदेशों में स्थान दिलाती है।
असीम संभावनाओं का गढ़ है छत्तीसगढ़ : धान का कटोरा नाम से विख्यात छत्तीसगढ़ अपनी प्राचीन समृद्ध संस्कृति और खनिज संसाधनों के लिए भी जाना जाता है। 1 नवंबर 2000 को मध्य प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के तहत अस्तित्व में आया छत्तीसगढ़ आज भारत के प्रमुख औद्योगिक और सांस्कृतिक राज्यों में गिना जाता है।
रायपुर को राजधानी बनाकर और बाद में नवा रायपुर (अटल नगर) को आधुनिक प्रशासनिक केंद्र के रूप में विकसित करके राज्य ने विकास की नई दिशा तय की। छत्तीसगढ़ के गठन ने न केवल क्षेत्रीय पहचान को मजबूती दी, बल्कि यहां के लोगों के लिए सामाजिक-आर्थिक प्रगति के नए अवसर भी खोले।
देश की औद्योगिक रीढ़ साबित हो रहा है :खनिज संपदा से समृद्ध यह राज्य देश की औद्योगिक रीढ़ साबित हो रहा है। लौह अयस्क, कोयला, बॉक्साइट, डोलोमाइट और टिन जैसे खनिजों की प्रचुरता ने इसे इस्पात और ऊर्जा उत्पादन का केंद्र बना दिया है।
भिलाई इस्पात संयंत्र देश के सबसे बड़े और अत्याधुनिक इस्पात कारखानों में से एक है, जिसने छत्तीसगढ़ को औद्योगिक मानचित्र पर विशेष स्थान दिलाया है। इसके अलावा कोरबा, रायगढ़, बिलासपुर और जांजगीर-चांपा जैसे जिले बिजली उत्पादन के क्षेत्र में अग्रणी हैं, जिससे राज्य पावर हब ऑफ इंडिया के नाम से प्रसिद्ध हुआ है।
25 हजार करोड़ से 5 लाख करोड़ के पार पहुंची जीडीपी : वर्ष 2000 में जब छत्तीसगढ़ का गठन हुआ था तब यहां की जनसंख्या 208.3 लाख थी। इसमें शहरी जनसंख्या 41.75 लाख थी। आज राज्य की कुल जनसंख्या बढ़कर 308.6 लाख हो गई है और शहरी जनसंख्या भी 85.68 लाख हो गई है। वहीं, साल 2000 छत्तीसगढ़ की जीडीपी 25,486 करोड़ थी, लेकिन आज 2025 में यह 5,67,880 करोड़ रुपए पहुंच चुकी है।
पर्यटन के क्षेत्र में भी राज्य ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है : छत्तीसगढ़ ने पर्यटन के क्षेत्र में भी राज्य ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। हरियाली से आच्छादित झरने, गुफाएँ और ऐतिहासिक स्थल देशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। बस्तर का दशहरा, जो विश्व का सबसे लंबा चलने वाला उत्सव है, छत्तीसगढ़ की समृद्ध जनजातीय संस्कृति का प्रतीक है। पंथी नृत्य, राउत नाचा और करमा नृत्य जैसी लोक कलाएं इस भूमि की जीवंत परंपराओं को सहेजे हुए हैं।
धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है छत्तीसगढ़ :धार्मिक दृष्टि से भी छत्तीसगढ़ अत्यंत महत्वपूर्ण है। दंतेश्वरी मंदिर (बस्तर), बम्लेश्वरी मंदिर (डोंगरगढ़), महामाया मंदिर (रतनपुर), चंद्रहासिनी मंदिर (सक्ती) और भोरमदेव मंदिर (कबीरधाम) जैसे प्राचीन मंदिर न केवल आस्था के केंद्र हैं बल्कि ऐतिहासिक धरोहर भी हैं।


