CG OD महाभारत कालीन शिशुपाल से लेकर सिरपुर के नागार्जुन की तपस्या भैना राजाओं की वीरगाथा तक सरायपाली शिशुपाल पर्वत आस्था, इतिहास और रहस्यों का खजाना
छत्तीसग़ढ में ओड़िसा सीमा पर स्थित सरायपाली से 30 किमी दूर शिशुपाल पर्वत युवाओं के बीच पसंदीदा पिकनिक स्पॉट बनता जा रहा है….!इस शिशुपाल पर्वत का संबंध महाभारत काल से जोड़ते हैं तो कुछ लोग भैना राजा से जोड़ते है, पर्वत का इतिहास जो हो लेकिन यह क्षेत्र निश्चित ही एक अच्छे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है।लोक मान्यता यह भी है कि छग,कृष्ण, महाभारत का नाता यहां भी जुड़ता है…पौराणिक मान्यताओं अनुसार महाभारत काल मे सिरपुर का प्राचीननाम चित्रांगदपुर, मणिपुर था।इसी मणिपुर में महाभारत कालीन चेदिवंश के राजा शिशुपाल का राज था जिसका विवाह विदर्भ के राजा रुक्म की बहन रुक्मणि से हुआ था किंतु श्रीकृष्ण के रुक्मणि को भगा ले जाने के कारण के कारण शिशुपाल का युद्ध श्रीकृष्ण से हुआ था। इसी स्थान पर शिशुपाल पर्वत है जो सिरपुर से कुछ दूरी पर सरायपाली के समीप स्थित है, यात्री व्हेनसांग के वृतांत में लिखा है- दक्षिण कोसल की राजधानी से कुछ दूरी पर एक नरम पत्थर से बना पर्वत था। पर्वत को काट कर एक 5 मंजिला गुफा बनाई गई थी,बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन यहीं निवास करते थे।
पर्वत भवन का निचला कक्ष आम जनता के लिए, ऊपरी तल बौद्ध भिक्षुओं के लिए,सबसे ऊपरी तल पर नागार्जुन का निवास था।कहा जाता है, नागार्जुन ने श्रीपर्वत में 12 वर्षो तक तपस्या की थी। व्हेनसांग ने इस पर्वत का नाम “पो-लो- मो-लो-की-ली” लिखा है। कुछ इतिहासकारों द्वारा “पो लो मो लो की ली” का उल्लेख बस्तर के अभि लेखों में वर्णित भ्रमरकोट मण्डल से मानते हैँ उनके अनुसार पर्वत बस्तर के समीप कोरापुट में काला हाण्डी तथा बस्तर की सीमा पर स्थित है।
सरायपाली के समीप शिशुपाल पर्वत में स्थित गुफाओं में भी कुछ समानताएं मिलती हैं।भौगोल शास्त्रियोँ के मतानुसार सरायपाली क्षेत्र में स्थित पर्वत बस्तर पर्वतमाला का ही प्रसार है जो केसकाल, नगरी,गरियाबंद छुरा, फिंगेश्वर, बागबाहरा से पिथौरा- सरायपाली तक फैला है। शिशुपाल पर्वत ही संभवतः नागार्जुन निवास स्थान हो सकता है। जन मान्यता के अनुसार इस पर्वत का इति हास भैना राजाओं के शौर्य को दर्शाता है,पहले पर्वत, राजाओं- सैनिकों के लिए एक अभेद्य किला था।किले में राजा-सैनिक गुप्त सुरंगों में रहा करते थे। अंग्रेजों के काल में जब राजा-अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ,राजा वीरगति को प्राप्त हुए। बाद में राजा की 7 रानियों ने लाज बचाने 1 हजार फीट ऊंचाई सेघोड़े पर आँखों में पट्टी बांधकर छलांग लगा दिया,इसी वजह से इस जगह का नाम घोड़ाधार झरना पड़ा, शिशुपाल पर्वत में एक प्राचीन शिव मंदिर हैं,शिव समर्पित इस मंदिर के बाहर मकर संक्रांति पर विशाल मेला लगता है, हजारों की संख्या मेंश्रृद्धालु यहां आते हैं।कहते हैं इस सूर्यमुखी मंदिर में पहले हनुमान सिक्का जड़ा हुआ था जिसे बहुत शक्तिशाली- प्रभावशाली माना जाता था। लेकिन अब यहसिक्का गायब है।
यहां एक बहुत लंबी सुरंग है,नदी की रेत ने अब इस सुरंग का मार्ग अव रुद्ध कर दिया है, लेकिन स्थानीय निवासी बताते हैं कि सुरंग के भीतर अब भी राजा के अस्त्र-शस्त्र पड़ेहुए हैं,पर्वत में बहुत सी आयु र्वेदिक जड़ी-बूटियां मिलती हैं। शतावर,अश्वगंधा ज्यादा संख्या में हैंं।शिशुपाल पर्वत को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किये जाने की जरूरत है, पूर्व सीएमभूपेश बघेल ने तो पर्यटक स्थल घोषित कर दिया था।