CG : संकट के समय सहारा बनी गढ़फुलझर की सुरंगें, जो जाती थीं भंवरपुर-पिरदा-सारंगढ़ तकखं डहरों में छिपा इतिहास, किले की सुरंगों का अनसुना सच, गढ़फुलझर का किला, जिसे सुरक्षा की दृष्टि से अभेद्य माना जाता था, राजा अनंतसाय द्वारा बनवाया गया था. स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि राजा अनंतसाय एक महापराक्रमी योद्धा थे. उन्होंने अपने सैनिकों और प्रजा की सुरक्षा के लिए इस किले का निर्माण करवाया था.
महासमुन्द. छत्तीसगढ़ में राजा-महाराजाओं का गौरवशाली इतिहास है, लेकिन इनमें से कई कहानियां समय के साथ गुमनामी में खो गई है. महासमुंद जिले के बसना ब्लॉक के गढ़फुलझर गांव में स्थित एक ऐसा ही ऐतिहासिक स्थल है, जो आज एक वीरान और खंडहर में बदल चुका है. यह किला या महल अपने भीतर कई रहस्यों को समेटे हुए है और छत्तीसगढ़ के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
गढ़फुलझर का अभेद्य किला
खंडहरों में छिपा इतिहास, गढ़फुलझर किले की सुरंगों का अनसुना सच
गढ़फुलझर महल का इतिहास
गढ़फुलझर का किला, जिसे सुरक्षा की दृष्टि से अभेद्य माना जाता था, गौड़ वंश के राजा अनंतसाय द्वारा बनवाया गया था. स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि राजा अनंतसाय एक महापराक्रमी योद्धा थे. उन्होंने अपने सैनिकों और प्रजा की सुरक्षा के लिए इस किले का निर्माण करवाया था. यह किला बाहरी आक्रमणों से निपटने के लिए बनाया गया था, और इसे इस प्रकार डिजाइन किया गया था कि दुश्मनों को इसके अंदर का पता न चल सके. किले की दीवारों में छिपे हुए ऐसे गुप्त स्थान थे जहां से सैनिक आसानी से हथियार चला सकते थे, लेकिन बाहर से आने वाले आक्रमणकारियों को इसका कोई अंदाजा नहीं होता था. जब भी किले पर हमला होता, दुश्मनों के हथियार किले की दीवारों पर ही आकर रुक जाते, जबकि सैनिक पूरी तरह से सुरक्षित रहते. इस तरह का अभेद्य किला उस समय के लिए बेहद उन्नत सुरक्षा तंत्र का उदाहरण था, उसका कुछ सबूत आज भी गढ़फुलझर के खंडहरों में देखे जा सकते हैं.
सुरंगों का रहस्यमय इतिहास
गढ़फुलझर किले के बारे में एक और दिलचस्प तथ्य इसकी गुप्त सुरंगें हैं, जिनका उपयोग राजा और उनके सैनिक युद्ध और अन्य संकटों के समय किया करते थे. स्थानीय ग्रामीणों और बुजुर्गों के अनुसार, गढ़फुलझर से भंवरपुर, पिरदा, और सारंगढ़ तक ये सुरंगें जाती थीं. इसके अलावा, राजा के कुलदेवी के मंदिर से भी गुप्त रास्ते बने हुए थे, जिनका उपयोग राजा और उनके सैनिक सुरक्षा के लिए किया करते थे.
हालांकि समय के साथ ये सुरंगें बंद हो चुकी हैं, लेकिन लोगों का मानना है कि गढ़फुलझर और भंवरपुर के तालाबों में बने कुओं से इन सुरंगों की शुरुआत होती थी. इन कुओं का इस्तेमाल राजा और उनके सैनिक गुप्त रूप से बाहर निकलने के लिए करते थे. स्थानीय लोग बताते हैं कि सालों पहले गढ़फुलझर के रानी सागर तालाब में मछलियां पकड़ने के दौरान कुछ ऐसे सुराग मिले थे, जो इन सुरंगों के अस्तित्व की पुष्टि करते हैं.
गौड़ वंश के अंतिम राजा भैना थे, जिन्होंने इस किले और महल की देखभाल की थी. उनके बारे में कहा जाता है कि वे अपनी रानी पद्मावती से बेहद प्रेम करते थे. राजा भैना ने अपनी रानी के लिए विशेष रूप से ‘रानी महल’ और ‘रानी सरोवर’ का निर्माण करवाया था. यह सरोवर केवल रानी के स्नान के लिए था, और राजपरिवार के किसी अन्य सदस्य को इसमें नहाने की अनुमति नहीं थी. यह उनकी प्रेम की गहरी भावना का प्रतीक था, जो आज भी लोगों के दिलों में जीवित है.
गढ़फुलझर का ऐतिहासिक महत्व
गढ़फुलझर का किला न केवल गौड़ वंश के गौरव का प्रतीक है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास और संस्कृति का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है. किले की वास्तुकला और संरचना इस बात की गवाही देती है कि उस समय सुरक्षा और तकनीकी दृष्टि से यह किला कितना उन्नत था. स्थानीय बुजुर्ग आज भी राजा अनंतसाय और राजा भैना के वीरता और प्रेम के किस्से सुनाते हैं, जो इस किले को और भी रहस्यमय बनाते हैं. हालांकि, आज यह किला खंडहर में बदल चुका है और इसे पर्यटन के लिहाज से विकसित करने की जरूरत है, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व कभी कम नहीं हो सकता. गढ़फुलझर किला छत्तीसगढ़ की धरोहर का वह हिस्सा है जिसे संरक्षित करने और आने वाली पीढ़ियों को इसके बारे में बताने की जरूरत है.