संवाददाता अनुराग नायक बसना: मामा-भाँचा मेला 6 अक्टूबर को, लोहडीपुर में गूंजेगी श्रद्धा की घंटियां ऋषि-मुनियों की तपोभूमि पर उमड़ेगा भक्तों का सैलाब आस्था, परंपरा और अध्यात्म का अनूठा संगम एक बार फिर देखने को मिलेगा। सदियों से चली आ रही मान्यता के अनुसार, श्री मामा-भाँचा मेला इस वर्ष दिनांक 06 अक्टूबर 2025, दिन सोमवार को बड़े धूमधाम से आयोजित किया जा रहा है। यह ऐतिहासिक मेला भंवरपुर से 5 किलोमीटर दूर, उत्तर दिशा में स्थित लोहढ़ीपुर के घने जंगलों में स्थित मामा-भाँचा पहाड़ पर हर साल कुंवर (शरद पूर्णिमा) के अवसर पर मनाया जाता है।
किवदंतियों के अनुसार, यह स्थल न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि इसे ऋषि-मुनियों की तपोभूमि भी कहा गया है। यहां मुनि गुप्ता, बारस पीपर, भीम बांध, ऋषि सरोवर, बारह सीला (प्रखर), लंबी सुरंग, सीता बाबा और मामा-भाँचा मंदिर जैसे पवित्र स्थल मौजूद हैं।
हर वर्ष की तरह इस बार भी यहां साँईं बाबा मंदिर के पास हरि कीर्तन और श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया जाएगा। ग्रामीणों और श्रद्धालुओं में मेले को लेकर उत्साह चरम पर है। पूरा क्षेत्र भक्तिमय वातावरण में तब्दील हो चुका है — जगह-जगह साफ-सफाई, रोशनी और व्यवस्था के कार्य पूरे किए जा चुके हैं।
यज्ञकर्ता समिति में रूपेश पंडा (8720824452), ताराचंद पंडा (8120258991) और ऋषिकेश वैष्णव (6261245271) के नेतृत्व में तैयारियां की जा रही हैं।सहयोगी: देवकी पुरुषोत्तम दीवान (कृषि सभापति महासमुंद),महेश्वर प्रीतम सिंह सिदार (जनपद सदस्य बसना),
हरकुमार पटेल (समिति प्रबंधक उडे़ला),
संतराम निषाद (अध्यक्ष कृषि साख सहकारी समिति उडे़ला),
केवती हरियंद पटेल (सरपंच ग्राम पंचायत लोढ़ीपुर),
लीलामणि देवकुमार सिदार (पूर्व सरपंच ग्राम पंचायत लोढ़ीपुर)।
आयोजक:
समस्त ग्रामवासी लोढ़ीपुर
छत्तीसगढ़ -/ मामा भाचा मेला तो सब जानते है लेकिन क्या है इसके पीछे का कारण की मामा भाचा और मुनि पहाड़ पर्वत के रूप में परिवर्तित हो गए कुछ सालों तक प्रेमी जोड़ा भागने को लेकर भी यह स्थान मशहूर हुवा था ?
छत्तीसगढ़ में एक से एक जगह है और हर जगह का अलग अलग मान्यताएं है आस्था इतना ज्यादा है कि आज भी सालों बीत जाने के बाद भी आस्था पर कोई कमी नही आई है बात कर रहे है हम छत्तीसगढ़ के महासमुन्द जिले अंतर्गत आने वाले बसना ब्लॉक के भंवरपुर क्षेत्र में आता है खोखसा लोहड़ी पुर और आस पास के कई गांव के मध्य एक पहाड़ है जिसका नाम है मामा भाचा जंगल यहां पर मामा भाचा के नाम से हर साल
सरदपूर्णिमा पर यहाँ मेला लगता है कई हजार के संख्या में लोग यहां आते है रात भर कार्यक्रम और पूजा पाठ होता है रात को लोग पहाड़ मे चढते है चांदनी रात में पहाड़ों पर हजारो के संख्या में दिखाई देते है बताया तो यह भी जाता है कि मामा भाचा जंगलों में भालू और अन्य हिंसक जानवर भी है लेकिन इस दिन ये दिखाई नही देते और आज तक किसी को नुकसान नही पहुचाया यह बात तो सभी को पता है लेकिन मामा भाचा नाम कैसे विख्यात हुवा यह एक बड़ा सलाल है बता दें आस पास के गांव वाले मिलकर इस मेले को आयोजीत करते है और कानून व्यवस्था बनाने पुलिस प्रशासन का भी सहायता मिलता है ।
स्थानीय लोगो मे कई सालों में यह मान्यता है की इस जंगल में तीन पहाड़ हैं, जिसे मामा, भांजा और शीत बाबा के रूप में जाना जाता है यहां के लोगों के मुताबिक ये तीनों कभी आदमी थे, लेकिन बाद में वे पहाड़ पर्वत डोंगरी के रूप में परिवर्तित हो गए. लोग इन्हें देवओ के रूप में पूजते हैं और हर साल यहां सरदपूर्णिमा पर बड़े मेले का आयोजन किया जाता है हालांकि, इस घटना का कहीं कोई लिखित प्रमाण नहीं है,
लेकिन गांववालों की वर्षों पुरानी मान्यताएं इस जंगल को भी हरा-भरा किए हुए हैं और आस्था आज भी जीवित है ।
मामा-भांजा जंगलों के आस पास रह रहे ग्रामीणों के अनुसार कई सालों पहले मामा-भांजा दो शिकारी खोकसा गांव के पास अपनी फसल की रखवाली कर रहे थे वहीं पर, शीत बाबा जंगली सुअर का रूप धारण कर मामा-भांजा के खेत में लगी फसलों को खाने लगे कहा जाता है की शिकारी मामा-भांजा जंगली सुअर का पीछा करते हुए एक स्थान पर पहुंचे, जैसे ही मामा-भांजा ने जंगली सुअर को मारना चाहा तो वह अपने अपने असली रूप (शीत बाबा) के रूप में आ गए बाबा ने मामा-भांजा से कहा कि तुम शिकारी का काम छोड़ दो और हम तीनों यहां एक साथ रहेंगे बाबा ने मामा-भांजा से कहा कि लोग हमारी पूजा करेंगे और मामा-भांजा का नाम लेकर कोई मनोकामना मांगेगा तो उसकी मनोकामना पूरी होगी. फिर तीनों अलग-अलग पहाड़ के रूप में हमेशा के लिए वहीं खड़े हो गए और यह मान्यता आज भी चली आ रही है
गौरतलब है कि ये मेला केवल 24 घंटे ही लगता है जिसमें शामिल होने बहुत दूर दूर से लोग बड़ी संख्या मेंआते हैं जिस जगह ये मेला लगता है उस जगह को प्राचीन काल के ऋषियों की तपोभूमि कहते हैं जहाँ आज भी ऋषियों के कुछ अवशेष मौजूद हैं जैसे ऋषि सरोवर ,ऋषि गुफा, मुनि धुनि ,वराह शीला, चूल्हा ,बारस पीपल ,भीम बाँध इत्यादि बड़े बुजुर्ग बताते हैं के यहाँ डोंगरी के अंदर में झरना है झील के जैसा छोटा तालाब है हरा भरा मैदान है जो हर समय ठण्ड और ताजगी से भरा रहता है ।
यहाँ शिव का प्राचीन मंदिर है और लंबी लंबी अथाह सुरंगें हैं जहाँ पत्थरों को हाथ से रगड़ने पर आज भी भभूत मिल जाती है यही नहीं इस डोंगरी पर आयुर्वेदिक औषधियों का भी भंडार है. जहाँ आज भी वैद्यो को कई दुर्लभ प्रजाति की औषधियों तथा जड़ी बुटी के पौधे आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं और डोगरी के बाहर विशाल जलाशय है जो बारह महीने पानी से भरा रहता है. जो कि नहाने वाले को ताजगी से भर देता है कहते हैं की इस जगह पर रात को जाने और डोंगर पर चढ़कर मामा भांचा मंदिर के दर्शन कर आशिर्वाद लेने वाले को बहुत ही आत्मिक शान्ति की अनुभूति होती है.
चांदनी रात में बिना किसी लाइट के इस पहाड़ी की बड़ी बड़ी चट्टानों को पार करते हुए इसकी चोटी पर चढ़ना किसी रोमांच से कम नहीं है. और चोटी पर चढ़कर वहां से आस पास के क्षेत्रो का नजारा तो रोंगटे खड़े करने के लिए काफी है ये मेला इसलिए भी प्रसिद्ध है क्योंकि इस मेले से हर वर्ष अनेक प्रेमी युगल अन्यत्र पलायन कर जाते हैं जिसे छत्तीसगढ़ी भाषा में उढ़रिया भाग जाना कहते हैं और इसलिए इस मेले को जंगल में मंगल भी कहते हैं.
बता दें कि सालों पहले मामा भाचा मेला से प्रेमी जोड़ा भागने का भी प्रचलन जोरो था ऐसा किसी के पास अभी पुख्ता प्रमाण तो नही है लेकिन सालों पहले मामा भाचा मेला से प्रेमी जोड़ा भागने का अफवाह हर साल रहता था लेकिन अब ऐसा सुनने को नही मिलता है ।
सरकार की उदासीनता..
इस जगह को ऐतिहासिक स्थल घोषित कर इसका संरक्षण करने तथा यहाँ सुविधाएं विकसित करने की मांग आस पास की जनता के द्वारा सरकार से कई वर्षों से की जा रही है तथा हर वर्ष मेले के वक़्त आस पास के जन प्रतिनिधियों को यहां मुख्य अतिथि के रूप में बुलाकर उनसे भी विनती की जाती है. पर उसे आश्वासन के अलावा कुछ भी नहीं मिला है यदि यहाँ जाने हेतु पहुँच मार्ग तथा ऊपर चढ़ने हेतु सीढ़ियों का निर्माण करवा दिया जाए तो यहाँ पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं जो इस क्षेत्र के विकास में काफी मदद गार हो सकती हैं
कैसे पहुंचे.
ये जगह जिला मुख्यालय महासमुंद से 130 KM ब्लाक मुख्यालय बसना से 20 KM जबकि भंवरपुर से 5 KM की दुरी पर उत्तर में स्थित है वैसे तो इस जगह पर पंहुचने के लिए चारों तरफ से रास्ता है मगर भंवरपुर से बनडबरी पतरापाली जाने वाले रास्ते पर तथा भंवरपुर से बरतियाभाँटा होते हुए संतपाली जाने वाले रास्ते पर जाना ज्यादा बेहतर है भंवरपुर लोहड़ीपुर मार्ग जो थोडा दुर्गम तो है मगर ठीक है.