Thursday, September 18, 2025
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महासमुंद-/ क्या श्रापित हो गया था गढफुलझर का महल क्या तालाब के अंदर सुरंग और गुप्त रास्ते , क्या कुलदेवी के श्राप से जलमग्न हो गए थे राजा और रानी ?पढ़े insite story

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(महासमुंद बसना )से हेमन्त वैष्णव
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छत्तीसगढ़ में राजा महाराजाओं का कई ऐसे इतिहास है जो गुमनानी में खो गया है जिन्हें जानना बहुत ही जरूरी है छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लॉक अंतर्गत ग्राम गढफुलझर में वीरान और खंडहर का रूप ले चुका यह किला कहें या महल अपने आप मे बहुत सारे रहस्यों को लेकर आज ऐसी स्थिति में खड़ा हुआ है ।

गौड़ वंश के राजा अनंतसाय ने बनाया था गढफुलझर का अभेद किला जहां सस्त्र और तलवारों और तीर कमान से जनता की सुरक्षा का दायित्व

जानकारों और सोसल मीडिया में रिसर्च करने पर जानकारी मिला की
गढफुझर के जमीदार पटना राज्य के 18 गड़जाट में से एक थे जहां हैहयवंसी राज्यकाल से लेकर 18 पीढ़ियों तक गोंड़ राजाओं का शासन था , यहां के शाशक , चांदा , राज्यवंस के वंशज माने जाते है 1608 ई में इस गोंड़वंश के हरराजशाय ने यहां के शाशक को युद्ध मे हराकर अपना राज्य स्थापित किया । इस वंश के चतुर्थ राजा त्रिभुवन साय के समय इस वंश के कनिष्ठ साखाएँ सारँगढ़ रायगढ़ शक्ति और सुवरमार में स्थापित हुई ।
गडफुलझर में राजा अनंतसाय द्वारा 1808 ई . में सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भव्य किला बनाया गया था जिसके खंडहर आज भी अपनी गौरव गाथा एवं पुरानी महता की कहानी सुनाती है पुराने किले के अवसेस आज भी विधमान है

गढफुलझर का अभेद महल और सुरक्षा के लिए अभेद किला का जो निर्माण कराया गया था गौड़ वंस के राजा अनंतसाय ने कराया था बुजुर्ग बताते है कि राजा अनंतसाय महापराक्रमी थे राजा अपने सैनिकों के साथ जनता के सुरक्षा के लिए यह अभेद किला का निर्माण कराया था जहां बाहरी आक्रमणकारियों से जनता और राजपरिवार को बचाया जा सके इसका सबूत आज भी गढ़फुलझर में मौजूद है जहां से किले के गुप्त स्थान के इस पार से सस्त्र चलाते थे और बाहर के आक्रमणकारियों को पता नही चलता था और बाहरी आक्रमणकारियों जब हमला किया जाता था उनके सस्त्र किले के दीवाल में ही लगते थे सैनिकों को नही ।

भंवरपुर गढ़फुलझर पिरदा सारँगढ़ के रानी सागर में सुरंग और गुप्त रास्ते की बाते बहुत ही प्रचलित है

कहा जाता है कि राजाओं ने अंग्रेजो से भी लड़ाई लड़ी थी गढफुलझर भंवरपुर और पिरदा के बुजुर्ग और स्थानीय ग्रामीण के जानकारों के अनुसार जहां आज रानी सागर तालाबो से जो सुरंग है वह गढ़फुलझर से भंवरपुर और पिरदा और सारँगढ़ तक सुरंग जाते थे और राजाओं के कुलदेवी के मंदिर से गुप्त रास्ते थे जिनका उपयोग राजा और उनके सैनिक करते थे वे गुप्त रास्ते समय के साथ बंद हो चुके है लेकिन कहा जाता है कि भंवरपुर और गढ़फुलझर के सरोवर में कुँवा था और उन्हीं कुंवे में से सुरंगे थे जिन्हें राजाओं और उनके सैनिकों द्वारा उपयोग में लाया जाता था बुजुर्गों द्वारा बताया जाता है कि सालों पहले गढ़फुलझर के रानी सागर में मछलियां पकड़ने तालाब में जाल फेका जाता और मछली पकड़ते थे तो उस समय भंवरपुर का तालाब का पानी गंदा हो जाया करता था चुकी सुरंगे गडफुलझर और भंवरपुर को जोड़ती थी ।

गौड़ वंस के अंतिम राजा थे भैना राजा जिन्होंने गढ़फुलझर के गढ़ को सम्हाला था

जानकारों के अनुसार गौड़ वंश के अंतिम राजा भैना था जिन्होने इस गढ किले और राजमहल को सम्हाल के रखा था बताया जाता है राजा भैना अपनी रानी पद्मावती से इतना प्यार करते थे कि रानी के लिए अलग से रानी महल और रानी सरोवर का निर्माण कराया था जहां रानी को ही स्नान के लिए था बाकी राजपरिवार के किसी अन्य सदस्यों को रानी सरोवर में नहाने का अनुमति नही था ।

प्राचीन इतिहास के अध्ययन से ज्ञात होता है कि राजे-रजवाड़ों एवं जमीदारियों में शक्ति की उपासना की

जाती थी और वर्तमान में भी की जाती है। शक्ति की उपासना से राजा शत्रुओं पर विजय के लिए शक्ति प्राप्त करता था। वह शक्ति को चराचर जगत में एक ही है पर वह भिन्न-भिन्न नामों से जानी जाती है।

ऐसी ही एक शक्ति की देवी हैं खम्भेश्वरी माता, जो छत्तीसगढ़ के भैना राजाओं की कुल देवी एवं सर्वजनों की आराध्य हैं। छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना तहसील से पदमपुर रोड पर 10 कि मी की दूरी मे स्थित गढ़फ़ूलझर कौडिया-राज कहलाता है। जिसका विस्तार कोमाखान से सोनाखान तक रहा है।

किवदंती के अनुसार रात्रि मे गांव भ्रमण में देवी निकलती है तो शेर की पदचापों की आवाज आती थी ।

यहाँ भैना राजा का गढ़ वर्तमान मे खंडहर रुप मे विद्यमान है। यहां पर फ़ूलझर राज के भैना राजाओं की कुलदेवी खम्भेश्वरी पाटनेश्वरी और समलेश्वरी देवी की स्थापना गढ़ के अंदर एक विशालकाय इमली वृक्ष के नीचे है स्थापित है, जहाँ स्थानीय लोगों द्वरा मंदिर तैयार करवा दिया गया है।

जनश्रुति के अनुसार क्षेत्र के जनमानस खम्भेश्वरी देवी को अत्यंत शक्तिशाली देवी व महिमामयी देवी मानते है। देवी अपनी प्रजा की सुरक्षा के लिए रात्रि मे गांव मे भ्रमण करती है, जिससे उस राज्य का जनमानस सुरक्षित रहे और किसी विपदा का शिकार न हो। कहते हैं कि जब देवी निकलती है तो शेर की पदचापों की आवाज आती है।

 

भगवान नरसिंह नाथ जी हिरण्यकश्यप का वध करने के लिये खम्भे से प्रकट हुए तो उस खंभा स्वरूप गर्भ में धारण करने वाली देवी को खम्भेश्वरी माता के रूप मे देवी मानते आ रहे हैं।गर्भ या खंभा रुपी देवी रौद्र-रुप नरसिंह नाथ को भी अपने अंदर समाहित रखती है या धारण करती है।

जो देवी भगवान नरसिंह नाथ को खम्भे से जन्म देनी की शक्ति रखती है उसका निश्चय ही अति शक्तिशाली होना स्वभाविक है और खम्भेश्वरी देवी की स्थापना इसी कारण भैना राजाओं के द्वारा कुलदेवी के रूप में गढ़ की रक्षा हेतु गढ़ अर्थात राज्य की रक्षिका देवी के रूप में गढ़ के अंदर स्थापित की गई।

क्या कुलदेवी के श्राप के कारण जलमग्न हो गए राजा रानी क्या श्रापित हो गया महल ?

जानकारों का मानना है कि एक दिन राजा रानी स्नान कर रहे थे और कुलदेवी के प्रकोप के कारण जलमग्न हो गए राजपरिवार और उनके सैनिकों राजा रानी को ढूंढने का बहुत प्रयत्न किए लेकिन राजा और रानी को नही ढूंढ पाए कहा जाता है इसके बाद कुलदेवी का श्राप राजपरिवार और महल पर लग चुका था जिसके कारण राजपरिवार के सदस्य खत्म होने लगे राजपरिवार ने महल और परिवार को बचाने कई प्रकार के तांत्रिक यज्ञ और पूजा पाठ कराया गया लेकिन देवी का प्रकोप को शांत नही कर पाए आखिर में राजपरिवार ने बिलासपुर के मल्हार में जाकर बस गए ऐसे जानकारों का कहना जिसके बाद राजमहल और किला खंडहर में तब्दील होने लगा
लेकिन कुछ जानकारी अभी अधूरी है आखिर राजा और रानी से कुलदेवी क्यो अप्रसन्न हो गई थी और आखिर क्यों जलमग्न हो गई राजा रानी इन रहस्यमयी घटनाओं से पर्दा उठना बाकी है ।

किले के आस पास खजाने की तलाश में कई वर्षों तक भटकते थे लोग

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि महल के आस पास हंडा हडोला खजाना ढूंढने के लिए कई वर्षों से खजाने की तलाश में लोग भटक रहे है ग्रामीणों का कहना है कि खजाने की तलाश में बाहरी लोग आकर चोरी छिपे तकाश करते है मानना है कि यहां पूर्वजो का खजाना या गड़ा हुवा धन छुपा हुवा है लेकिन दैवीय शक्ति के कारण किसी को हासिल नही हो रहा है ।

उस समय आखिर बिना सीमेंट और छड़ के 2 मंजिला महल बना बनाया गया उस दौर में भी तकनीक कुछ कम नही था बताया जाता है कि चुना और गुड़ और अन्य सामग्रियों के मदद से यह भव्य महल बनाया गया था लगभग 1808 ई में निर्माण हुवा था जिसका अवसेस बिना देख रेख के आज भी खड़ा हुआ है

 

शासन द्वारा गढफुलझर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने में लगा है साथ ही लगभग 2004 से कोलता समाज का कुलदेवी रामचंडी मंदिर के रूप में अब पूजा करने लगे है साथ ही साथ आस पास और भी अन्य समाजो भी सामुदायिक भवन और साहू समाज द्वारा कर्मा माता मंदिर का निर्माण की जानकारी मिला है।

 

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