भारत बनने जा रहा ग्रीन हाइड्रोजन हब 8 लाख करोड़ निवेश, 6 लाख रोजगार : आने वाले वर्षों में ग्रीन हाइड्रोजन से सस्ती पेट्रोल डीजल, बिजली, खाद और इस्पात के साथ करोड़ों को फायदा क्या कैसे होगी फायदे पढ़े पूरी खबर
एनजीएचएम तेजी से प्रगति कर रहा है: 23 अनुसंधान एवं विकास परियोजनाएं पुरस्कृत, बंदरगाह और उद्योग पायलट परियोजनाएं चल रही हैं, और ग्रीन अमोनिया की नीलामी में रिकॉर्ड निम्नतम मूल्य प्राप्त हुए हैं
प्रविष्टि तिथि:
केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री, श्री प्रल्हाद जोशी ने आज नई दिल्ली में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की ओर से आयोजित प्रथम वार्षिक ग्रीन हाइड्रोजन अनुसंधान एवं विकास कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन किया और हाइड्रोजन नवाचार में स्टार्ट-अप्स को सहयोग देने हेतु ₹100 करोड़ के नए प्रस्ताव आमंत्रण कार्यक्रम का शुभारंभ किया। यह योजना नवीन हाइड्रोजन उत्पादन, भंडारण, परिवहन और उपयोग प्रौद्योगिकियों में पायलट परियोजनाओं के लिए प्रति परियोजना ₹5 करोड़ तक की सुविधा देगी। कॉन्फ्रेंस में, 25 स्टार्ट-अप इलेक्ट्रोलाइजर निर्माण से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई)-संचालित सुधार और जैविक हाइड्रोजन समाधानों तक, अपने नवाचारों का प्रदर्शन करेंगे।
शोधकर्ताओं, स्टार्ट-अप्स, उद्योग जगत के नेताओं और नीति निर्माताओं को संबोधित करते हुए, श्री जोशी ने इस विषय पर जोर दिया कि यह कॉन्फ्रेंस महज विचारों को साझा करने के बारे में नहीं है, बल्कि अनुसंधान को व्यावहारिक समाधानों में बदलने के बारे में है, जो उद्योगों को नई ऊर्जा प्रदान कर सकते हैं, शहरों को स्वच्छ बना सकते हैं और पूरे भारत में लाखों नए रोजगार निर्माण कर सकते हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण को रेखांकित किया, जिन्होंने 2023 में राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (एनजीएचएम) की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य भारत के ऊर्जा परिदृश्य में बदलाव लाना और देश को हरित हाइड्रोजन का वैश्विक केंद्र बनाना है। ₹19,744 करोड़ के आउटले के साथ, यह मिशन चार स्तंभों – नीति और नियामक ढांचा, मांग पैदा करना, अनुसंधान एवं विकास व नवाचार, और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर, पर आधारित है।
एनजीएचएम के अंतर्गत अनुसंधान एवं विकास में हुई प्रगति
अनुसंधान एवं विकास में प्रगति पर प्रकाश डालते हुए, मंत्री महोदय ने कहा कि एनजीएचएम के अंतर्गत समर्पित अनुसंधान एवं विकास योजना ने प्रस्ताव आमंत्रण के पहले दौर में ही 23 परियोजनाएं प्रदान कर दी हैं। इनमें सुरक्षा एवं एकीकरण, बायोमास से हाइड्रोजन उत्पादन, हाइड्रोजन के इस्तेमाल और गैर-बायोमास हाइड्रोजन उत्पादन मार्ग जैसे प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं। अग्रणी आईआईटी, आईआईएसईआर, सीएसआईआर प्रयोगशालाएं और उद्योग भागीदार इन परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। अनुसंधान एवं विकास प्रस्तावों का दूसरा दौर, जो 14 जुलाई 2025 को शुरू हुआ था, 15 सितंबर 2025 तक खुला रहेगा। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी, यूरोपीय संघ-भारत व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद् के अंतर्गत सहयोग मिल रहा है, जिसमें कचरे से हाइड्रोजन उत्पादन पर 30 से अधिक संयुक्त प्रस्ताव मिले हैं।
हरित हाइड्रोजन इकोसिस्टम का निर्माण: विजन से लेकर काम तक
श्री जोशी ने इस विषय पर जोर दिया कि भारत में हरित हाइड्रोजन इकोसिस्टम पहले से ही विजन से लेकर काम करने की ओर अग्रसर है। भारत की पहली बंदरगाह-आधारित हरित हाइड्रोजन पायलट परियोजना तमिलनाडु के वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाह पर शुरू की गई है। इस्पात क्षेत्र में, पांच पायलट परियोजनाएं हाइड्रोजन-आधारित डीकार्बोनाइजेशन का प्रदर्शन कर रही हैं। नौवहन क्षेत्र में, तूतीकोरिन बंदरगाह पर जहाजों का नवीनीकरण और ईंधन भरने की सुविधाओं का निर्माण किया जा रहा है। परिवहन क्षेत्र में, हाइड्रोजन बसें और ईंधन भरने वाले स्टेशन पहले से ही कार्यरत हैं। उर्वरक के क्षेत्र में, भारत ने अपनी पहली हरित अमोनिया नीलामी आयोजित की, जिसमें 2024 में ₹100.28 प्रति किलोग्राम की तुलना में ₹49.75 प्रति किलोग्राम की ऐतिहासिक न्यूनतम कीमत प्राप्त हुई, और ओडिशा के पारादीप फॉस्फेट्स में इसकी आपूर्ति शुरू होने वाली है।
मंत्री जी ने पहले से मौजूद सुविधाओं पर भी प्रकाश डाला, जिनमें 140 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर हरित हाइड्रोजन मानक और प्रमाणन योजना, पांच नई परीक्षण सुविधाओं की स्वीकृति, हाइड्रोजन से संबंधित योग्यताओं में 5,600 से अधिक प्रशिक्षुओं का प्रमाणन, और ट्रांसमिशन शुल्क में छूट व सुव्यवस्थित मंज़ूरी जैसी नियामक छूटें शामिल हैं। भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता को मजबूत करने के लिए कांडला, पारादीप और तूतीकोरिन बंदरगाहों पर समर्पित हाइड्रोजन केंद्र तैयार किए जा रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि एनटीपीसी, रिलायंस और आईओसीएल जैसे बड़े उद्यम और स्टार्ट-अप तथा एमएसएमई, हाइड्रोजन में भारी निवेश कर रहे हैं, एक मजबूत वैल्यू चेन का निर्माण कर रहे हैं और लाखों नए रोजगार निर्मित कर रहे हैं।
भारत की प्रतिबद्धता दोहराते हुए, श्री जोशी ने कहा कि एनजीएचएम का लक्ष्य 2030 तक प्रतिवर्ष 50 लाख मीट्रिक टन हरित हाइड्रोजन उत्पादन, 125 गीगावॉट नई नवीकरणीय क्षमता, 8 लाख करोड़ रुपये का निवेश, 6 लाख नए रोजगार और हर साल 50 मिलियन टन कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन में कमी लाना है।
केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी ने सम्मेलन के दौरान आयोजित स्टार्टअप प्रदर्शनी का भी उद्घाटन किया।
उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए, भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार, प्रो. अजय कुमार सूद ने कहा कि अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) राष्ट्र को जटिल चुनौतियों का समाधान करने और आर्थिक विकास को गति देने में मदद करता है। प्रो. सूद ने एक मजबूत हरित हाइड्रोजन इकोसिस्टम के निर्माण के लिए निरंतर नवाचार के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “आरएंडडी वैकल्पिक नहीं, बल्कि आवश्यक है।”
नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय सचिव श्री संतोष कुमार सारंगी ने इस विषय पर प्रकाश डाला कि हरित हाइड्रोजन अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रम का बजटीय आउटले ₹400 करोड़ है और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को आगे बढ़ाने में सभी हितधारकों के साथ सहयोग और समर्थन करने के लिए तैयार है।
राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के मिशन निदेशक डॉ. अभय भाकरे ने कहा कि भारत आज हरित हाइड्रोजन के क्षेत्र में पूरे विश्व में अग्रणी बनने के मुहाने पर खड़ा है।
एमएनआरई की ओर से आयोजित पहली वार्षिक ग्रीन हाइड्रोजन आरएंडडी कॉन्फ्रेंस 2025 11-12 सितंबर 2025 को आयोजित की जाएगी, जिसमें विशेषज्ञ सत्र, इंटरैक्टिव गोलमेज सम्मेलन और भारत की हरित ऊर्जा क्रांति को आगे बढ़ाने वाली 25 अग्रणी कंपनियों के साथ एक स्टार्ट-अप एक्सपो शामिल होगा।