बसना (महासमुंद) — कृषि उपज मंडी समिति बसना एक बार फिर सुर्खियों में है। सूचना के अधिकार (RTI) से हुए खुलासे में मंडी शुल्क और धान खरीदी में बड़े पैमाने पर अनियमितता और सौदा पत्र गायब होने की बात सामने आई है। वहीं, मंडी समिति ने इन आरोपों को गलत बताते हुए ज्ञापन जारी कर इसे भ्रामक प्रचार बताया है। अब यह पूरा मामला क्षेत्र में चर्चा और सस्पेंस का विषय बना हुआ है।
मंडी समिति का पलटवार : “जानकारी गलत और भ्रामक”
इस खुलासे के बाद, कृषि उपज मंडी समिति बसना ने श्री महेन्द्र साव ग्राम वसना द्वारा प्रेस और व्हाट्सएप समूहों में फैलाई गई जानकारी को गलत और भ्रामक बताया है।
मंडी समिति के जारी ज्ञापन में कहा गया कि कृषि उपज मंडी अधिनियम 2005 के तहत जनवरी से सितंबर 2025 तक लाइसेंसधारी व्यापारियों द्वारा की गई खरीदी की जानकारी समय पर दी गई थी, जिसकी कुल मात्रा 1,49,809.10 क्विंटल है।
मंडी समिति ने कहा कि “महेन्द्र साव द्वारा गलत आंकड़े प्रसारित कर अधिकारियों, कर्मचारियों और व्यापारियों को बदनाम किया जा रहा है, जो अत्यंत खेदजनक है।”
RTI में बड़ा खुलासा : 7 महीने तक सौदा पत्र जारी नहीं
सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, 1 जनवरी 2025 से 1 जुलाई 2025 तक मंडी समिति बसना द्वारा किसी भी लाइसेंसधारी व्यापारी को सौदा पत्र (अनुबंध पत्र) जारी नहीं किया गया।
जबकि मंडी का कार्यक्षेत्र 100 से अधिक पंचायतों में फैला हुआ है, जहाँ किसानों द्वारा रबी सीजन में औसतन 900 टन से अधिक धान की पैदावार होती है।
RTI में खुलासा हुआ है कि इस अवधि में लाइसेंसधारी व्यापारियों ने मात्र 150 टन धान खरीदी की जानकारी दी है।
जबकि औसत उत्पादन और बिक्री के आधार पर कम से कम 750 टन धान का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला।
किसान संगठनों का कहना है कि यदि सौदा पत्र जारी नहीं हुआ, तो किसानों से की गई खरीदी का मंडी शुल्क कहाँ गया — यह करोड़ों रुपये की गड़बड़ी का संकेत है।
मंडी शुल्क और धान की खरीदी में अनियमितता का संदेह है और आरोप है क़ी मंडी क्षेत्र के कई व्यापारियों और राइस मिल संचालकों ने किसानों से ₹1200 से ₹1500 प्रति क्विंटल की दर पर धान खरीदा था।
यह संदेह भी जताया जा रहा है कि बचा हुआ लगभग 750 टन धान स्थानीय गोदामों या राइस मिलों में छिपाकर रखा गया है, ताकि आगामी खरीफ उपार्जन सत्र में शासकीय दर ₹3100 प्रति क्विंटल पर बेचा जा सके।
अब जांच की मांग तेज
RTI के आंकड़ों और मंडी समिति के ज्ञापन में आंकड़ों का बड़ा अंतर सामने आने से अब सवाल और गहराए हैं।
किसान संगठनों का कहना है कि यदि मंडी के रिकॉर्ड में 1.49 लाख क्विंटल खरीदी दर्शाई गई है, तो यह स्पष्ट किया जाए कि इतने बड़े अंतर के बावजूद जनवरी से जुलाई तक सौदा पत्र क्यों जारी नहीं किए गए।

                                    
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													
							
													